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Thursday, August 16, 2012

देशभक्ति के लिए आज भी सजा मिलेगी फाँसी की!

भगतसिंह इस बार ना लेना काया भारतवासी की,
देशभक्ति के लिए आज भी सजा मिलेगी फाँसी की!

यदि जनता की बात करोगे तुम गद्दार कहाओगे
बम्ब-सम्ब को छोडो भाषण दिया तो पकड़े जाओगे
निकला है कानून नया चुटकी बजते बंध जाओगे
न्याय अदालत की मत पूछो सीधे मुक्ति पाओगे
कांग्रेस का हुक्म, जरूरत क्या वारंट तलाशी की!
देशभक्ति के लिए आज भी सजा मिलेगी फाँसी की! 

मत समझो पूजे जाओगे
क्योंकि लड़े थे दुश्मन से रुत ऐसी है
अब दिल्ली की आँख लड़ी है लन्दन से,
कामनवेल्थ कुटुंब देश को खीँच रहा है मंतर से
प्रेम विभोर हुए नेतागण , रस बरसा है अम्बर से
योगी हुए वियोगी दुनिया बदल गयी बनवासी की!
देशभक्ति के लिए आज भी सजा मिलेगी फाँसी की!

गढ़वाली जिसने अंग्रेजी शासन में विद्रोह किया
वीर क्रांति के दूत, जिन्होंने नहीं जान का मोह किया
अब भी जेलों में सड़ते हैं न्यू माडल आजादी है
बैठ गए हैं काले, पर गोरे जुल्मों की गादी है
वही रीत है वही नाट है, गोरे सत्यानासी की!
देशभक्ति के लिए आज भी सजा मिलेगी फाँसी की!

सत्य अहिंसा का शासन है रामराज्य फिर आया है
भेड़-भेडिये एक घाट हैं, सब इश्वर की माया है
दुश्मन हे जज अपना, टीपू जैसों का क्या करना है
शांति सुरक्षा की खातिर हर हिम्मतवर से डरना है
पहनेगी हथकड़ी भवानी रानी लक्ष्मी झांसी की!
देशभक्ति के लिए आज भी सजा मिलेगी फाँसी की!

                                                          -शंकर शैलेन्द्र

Sunday, August 12, 2012

कचोटती स्वतन्त्रता – तुर्की के महान कवि नाज़िम हिकमत की कविता

तुम खर्च करते हो अपनी आँखों का शऊर,
अपने हाथों की जगमगाती मेहनत,
और गूँधते हो आटा दर्जनों रोटियों के लिए काफी
मगर ख़ुद एक भी कौर नहीं चख पाते;
तुम स्वतंत्र हो दूसरों के वास्ते खटने के लिए
अमीरों को और अमीर बनाने के लिए
तुम स्वतंत्र हो।

जन्म लेते ही तुम्हारे चारों ओर
वे गाड़ देते हैं झूठ कातने वाली तकलियाँ
जो जीवनभर के लिए लपेट देती हैं
तुम्हें झूठों के जाल में।
अपनी महान स्वतंत्रता के साथ
सिर पर हाथ धरे सोचते हो तुम
ज़मीर की आज़ादी के लिए तुम स्वतंत्र हो।

तुम्हारा सिर झुका हुआ मानो आधा कटा हो
गर्दन से,
लुंज-पुंज लटकती हैं बाँहें,
यहाँ-वहाँ भटकते हो तुम
अपनी महान स्वतंत्रता में:
बेरोज़गार रहने की आज़ादी के साथ
तुम स्वतंत्र हो।

तुम प्यार करते हो देश को
सबसे करीबी, सबसे क़ीमती चीज़ के समान।
लेकिन एक दिन, वे उसे बेच देंगे,
उदाहरण के लिए अमेरिका को
साथ में तुम्हें भी, तुम्हारी महान आज़ादी समेत
सैनिक अड्डा बन जाने के लिए तुम स्वतंत्र हो।
तुम दावा कर सकते हो कि तुम नहीं हो
महज़ एक औज़ार, एक संख्या या एक कड़ी
बल्कि एक जीता-जागता इंसान
वे फौरन हथकड़ियाँ जड़ देंगे
तुम्हारी कलाइयों पर।
गिरफ्तार होने, जेल जाने
या फिर फाँसी चढ़ जाने के लिए
तुम स्वतंत्र हो।

नहीं है तुम्हारे जीवन में लोहे, काठ
या टाट का भी परदा;
स्वतंत्रता का वरण करने की कोई ज़रूरत नहीं :
तुम तो हो ही स्वतंत्र।
मगर तारों की छाँह के नीचे
इस किस्‍म की स्वतंत्रता कचोटती है।

Thursday, May 3, 2012

नफ़स नफ़स, कदम कदम

नफ़स नफ़स, कदम कदम
बस एक फ़िक्र दम-बदम
घिरे हैं हम सवाल से हमें जबाब चाहिए !
जबाब दर सवाल है कि इंक़लाब चाहिए !
इन्क़लाब ! जिंदाबाद !
जिंदाबाद ! इन्क़लाब !

जहाँ अवाम के खिलाफ साजिशें हो शान से
जहाँ पे बेगुनाह हाथ धो रहे हो जान से
जहाँ पे लफ़्ज-ए-अम्‍न एक खौफ़नाक राज़ हो
जहाँ कबूतरों का सर परस्त एक बाज़ हो
वहाँ ना चुप रहेंगे हम
कहेंगे, हाँ कहेंगे हम
हमारा हक़, हमारा हक़ हमें जनाब! चाहिये !
घिरे हैं हम सवाल से हमें ज़बाब चाहिए !
ज़बाब दर सवाल है कि इंक़लाब चाहिए !
इंक़लाब ! जिंदाबाद !
जिंदाबाद ! इंक़लाब !

यकीन आँख मूँदकर किया था जिन पे जान कर
वही हमारी राह में खड़े हैं सीना तानकर
उन्‍हीं की सरहदों में कै़द हैं हमारी बोलियाँ
वही हमारे थाल में परस रहे हैं गोलियाँ।
जो इनका भेद खोल दे
हर एक बात बोल दे
हमारे हाथ में वही खुली किताब चाहिये !
घिरे हैं हम सवाल से हमें जबाब चाहिए !
जबाब दर सवाल है कि इंक़लाब चाहिए !
इंक़लाब ! जिंदाबाद !
जिंदाबाद ! इंक़लाब !

वतन के नाम पर खुशी से जो हुए हैं बे-वतन
उन्‍हीं की आह बे-असर उन्‍हीं की लाश बे-कफ़न
लहू पसीना बेच कर जो पेट तक न भर सकें
करें तो क्‍या करें भला, न जी सकें न मर सकें
सियाह ज़िन्‍दगी के नाम
जिनकी हर सुबह ओ शाम
उनके आसमाँ को सुर्ख़ आफ़ताब चाहिये!
घिरे हैं हम सवाल से हमें जबाब चाहिए !
जबाब दर सवाल है कि इंक़लाब चाहिए !
इन्क़लाब ! जिंदाबाद !
जिंदाबाद ! इन्क़लाब !


होशियार ! कह रहा लहू के रंग का निशान !
ऐ किसान! होशियार! होशियार! नौजवान!
होशियार! दुश्‍मनों की दाल अब गले नहीं!
सफेदपोश रहज़नों की चाल अब चले नहीं!
जो इनका सर मरोड़ दे
गु़रूर इनका तोड़ दे
वो सरफ़रोश आरज़ू वही शबाब चाहिए
घिरे हैं हम सवाल से हमें ज़बाब चाहिए ,
ज़बाब दर सवाल है कि इंक़लाब चाहिए |
इंक़लाब ! जिंदाबाद !
जिंदाबाद ! इंक़लाब !

तसल्लियों के इतने साल बाद अपने हाल पर
निगाह डाल सोच और सोच कर सवाल कर
किधर गए वो वायदे सुखों के ख्‍व़ाब क्‍या हुए
तुझे था जिनका इन्‍तज़ार वो जवाब क्‍या हुए
तू उनकी झूठी बात पर कभी न एतबार कर
कि तुझ को साँस साँस का सही हिसाब चाहिए
घिरे हैं हम सवाल से हमें जबाब चाहिए ,
जबाब दर सवाल है कि इंक़लाब चाहिए |
इंक़लाब ! जिंदाबाद !
जिंदाबाद ! इंक़लाब !

-शलभ श्रीराम सिंह

Friday, February 3, 2012

लड़ाई जारी है...

जारी है-जारी है
अभी लड़ाई जारी है।
यह जो छापा तिलक लगाए और जनेऊधारी है
यह जो जात पॉत पूजक है यह जो भ्रष्टाचारी है
यह जो भूपति कहलाता है जिसकी साहूकारी है
उसे मिटाने और बदलने की करनी  तैयारी है।

यह जो तिलक मांगता है, लडके की धौंस जमाता है
कम दहेज पाकर लड़की का जीवन नरक बनाता है
पैसे के बल पर यह जो अनमेल ब्याह रचाता है
यह जो अन्यायी है सब कुछ ताकत से हथियाता है
उसे मिटाने और बदलने की करनी तैयारी है।

यह जो काला धन फैला है, यह जो चोरबाजारी है
सत्ता पाँव चूमती जिसके यह जो सरमाएदारी है
यह जो यम-सा नेता है, मतदाता की लाचारी है
उसे मिटाने और बदलने की करनी तैयारी है।
जारी है-जारी है
अभी लड़ाई जारी है।

-सर्वेश्वर दयाल सक्सेना